कोई भी शेयर खरिदने से पहले फंडामेंटल को कैसे देखें ( How to Select Stocks using Fundamental Analysis)
शेयर मार्केट में जो भी नयें लोग शुरवात करते हैं तो वह किसी के टिप्स को सुनते हैं, किसी रिलेटेड, फ्रेंड या खबरों को देखकर शेयर खरिदते हैं और आधी अधुरी जानकारी के कारण वह उसी शेयर में इन्वेस्टर बन जाते हैं यानी नुकसान कि वजह से शेयर बेंच नहीं पाते। अक्सर ऐसी घटनायें नये लोगों के साथ ही होती हैं जो खुदको शेयर मार्केट का बादशाह समझने लगते हैं लेकिन उनको यह नहीं पता होता कि शेयर मार्केट में 100 लोगों में सिर्फ 10 प्रतिशत ही लोग मुनाफा कमा पाते हैं बाकी लोग कभी न कभी नुकसान कर बैठते हैं। जादातर लोग Share Bazar ka Ganit समज नहीं पातें और उससे नुकसान कर बैठते हैं।
अगर आप शेयर मार्केट में नये हैं और आपको हर एक स्टाॅक की जानकारी जानना चाहते हैं तो आपको ट्रेंडिंग व्हिव ऐप का इस्तमाल करना चाहियें।
इसी कारण आज हम आपको इसी विषय में कुछ ऐसी चींजों के बारे में जांच पड़ताल करना सिखायेंगे जो आपको शेयर को खरिदने से पहले देखनी होगी या परखनी होगी। सभी चींजों के बारे में बताना एक हि आर्टिकल में नामुमकिन होगा लेकिन जो चींजे महत्त्वपूर्ण लगती है वह चींजे आपको जरुर देखनी होगी अगर आप शेयर मार्केट में नये हैं।शेयर खरिदते वक्त इन 9 बातों पर जरुर ध्यान दें
मार्केट कैप ( Market Cap):
अगर आप शेयर मार्केट में कोई भी कंपनी में निवेश करना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले उसका मार्केट कैंप देखना जरुरी हैं।
अगर किसी कंपनी कि मार्केट कैप 1000 करोंड़ रुपयों के नीचे है तो वह स्माॅल कैंप में आती हैं अगर मार्केट कैंप 1000 से लेकर 10000 करोंड़ रुपयों तक हैं तो यह मिड कैंप में आती हैं और अगर इसका मार्केट कैंप 10000 करोंड़ रुपयों से भी ज्यादा हैं तो वह लार्ज कैंप यानी बड़ी कंपनीयों में गिनी जाती हैं।
कंपनी का मार्केट कैंप जितना जादा उतना रिस्क कम, आपको कईबार स्माॅल कैंपवाले शेयर 20% ऊपर या 20% नीचे भी दिखाई देंगे ऐसे में अगर आप यैसे शेयरों में निवेश करते हैं तो यह काफी रिटर्न्स देगा भी पर आपका इन्वेस्टमेंट भी उतनी ही तेजी से खत्म कर सकता हैं अगर यह नीचे आता हैं तो इसलिये हो सके तो लार्ज कैंप की कंपनीयों को हि चुनें अगर आप निवेश करना चाहते हैं तो।
आप जो भी शेयर ले रहे हैं कम से कम उसकी मार्केट प्राइस 100 करोंड़ से उपर हो अगर नीचे होगी तो वह शेयर मॅनीकुलेट होने की ज्यादा संभावना होती हैं यह बात जरुर ध्यान रखें।
पीबी रेशो (PB Ratio):
यह बहुत महत्त्वपूर्ण फैक्टर होता हैं चलिये जानते हैं यह होता क्या हैं। करंट प्राइस को बुक व्हाल्यु से अगर डिवाइड करतें हैं तो हमको पीबी रेशों मिलता हैं यह हमेशा 5 के नीचे हो तो हि उस स्टाॅक को आप कनसिडर करें अथवा ना करें।
अगर इसका करंट प्राइस/ बुक व्हाल्यु अगर 5 के ऊपर होता है तो वह महंगा होता हैं, अगर 2-5 होता है नाॅर्मल और अगर 2 से कम होता है तो किमत सस्ती मानी जाती हैं। यह कईबार बहुत अच्छी कंपनीयों में भी देखा जाता हैं या तो कंपनी के ऊपर कर्जा हों इसलिये इसके साथ और भी चींजों को देखना जरुरी हैं।
पीई रेशों समझने के लिये एक उदाहरण के तौर पर देखते हैं टाटा मोटर्स कंपनी का शेयर। अगर इसकी आज की करंट प्राइज देखें तो वह 2671.25 रुपयें हैं और बुक व्हाल्यु 1240.37 रुपयें हैं तो इसकी पीबी रेशों अगर निकाले तो यह 2.1535 निकलकर आती हैं यानी यह नाॅर्मल है आप इसमे इन्वेस्टमेंट के लिये सोच सकते हैं।
प्राइस अर्निग रेशों और ओपीएम (Price / Earning Ratio > OPM):
ज्यादातर लोग P/E Ratio को व्हाल्यु लेकर बात करते हैं कि स्टाॅक अच्छा है या नहीं लेकिन यहां और एक तरिका हम आपको बताते हैं की जिससे आप आसानी से पता कर सकते हैं कि स्टाॅक सही हैं या नहीं?
आपको सिर्फ P/E Ratio नहीं देखना साथ साथ आपको OPM यानी Operating Profit Margin भी देखना हैं। आपको वही शेयर को खरिदना है जहांपर P/E Ratio ओपरेटिंग प्रोफिट मार्जिन से कम हो तो ही यह अच्छा स्टाॅक्स माना जायेंगा। आपको यहां इसके साथ सभी पॅरामीटर देखने हैं यह एक हि पॅरामीटर देखकर नहीं चलेगा।
इंटरेस्ट कवरेज रेशो (Interest Coverage Ratio):
इससे आपको पता चल जायेगा कि कंपनी अगर ड्रा-डाउन या किसी कारण से नुकसान में जाती है तो कितने साल तो कितनी साल तक कंपनी नुकसान को उठा सकती है यह पता चलता है Intrest Coverage Ratio सें। अगर आप किसी शेयर में इन्वेस्टमेंट करना चाहते हैं तो उस शेयर का इंटरेस्ट कवरेज रेशों कम से कम 3 तो होना ही चाहिये मतलब 3 साल अवरेज कोई भी कंपनी को स्टेबल होने के लिये लगते हैं इसलिये यह जितना ज्यादा होगा उतने समय कंपनी नुकसान से उभर सकती हैं। किसी किसी कंपनी का यह रेशों निगेटिव में भी होता हैं तो वैसी कंपनी से दुरी रखना ही बेहतर होगा।
डेप्थ टु इक्विटी (Dept to Equity):
यह भी फॅक्टर फंडामेंटल के हिसाब से बहुत महत्वपूर्ण हैं। अगर बात करें डेप्थ टु इक्विटी कि तो यह हमेशा 1 से कम होना चाहियें यानी कंपनी के पास लोन कम होना चाहिते और एक बात और डेप्थ टु इक्विटी हमेशा इंटरेस्ट कवरेज रेशों से कम होना चाहियें वहीं शेयर को आप खरिदे।
गिरवी प्रतिशत (Pledged Percentage):
फ्लेज्ड यानी गिरवी रखना। अगर कोई प्रमोटर शेयर को गिरवी रख देता है तो यह इससे पता चल जाता हैं। फ्लेज्ड प्रतिशत हमेशा 1 के नीचे रहे तो बेहतर हैं वैसे तो जेरो हो तो और भी अच्छा है लेकिन अगर 1 से कम है तो भी आप इसके साथ जा सकते हैं।
ज्यादातर नयें लोग शेयर मार्केट में नुकसान क्यों कर बैठते हैं यह जानने के लिये आप हमारा शेयर मार्केट में लाॅस होने के 10 कारण? यह आर्टिकल भी पढ़ सकते हैं।
अर्निंग पर शेयर (EPS):
EPS यानी अर्निंग पर शेयर कैसे देखें यह मैं आपको बताता हु ज्यादातर लोग 3 साल का ईपीएस पकड़कर अच्छा या बुरा इसका हिसाब लगाते हैं लेकिन मैं आपको एक ऐसा गणित बताऊंगा जिससे अबका इपीएस अच्छा है या बुरा यह पता लगाया जा सकता हैं।
इसके लिये आपको चालु साल के इपीएस में से पिछले 3 साल वाले इपीएस को माईनस करना होगा जो भी उत्तर आयेगा उसका प्रतिशत निकालना होगा और उसे 3 साल यानी 3 से डिवाइड करना होगा उसके बाद जो भी आकडा आयेगा वह इपीएस आपको शेयर के बारे में बहुत कुछ बतायेंगा।
उदाहरण के तौर पर देखते हैं रिलायंस का शेयर का इपीएस देखते हैं अगर साल 2018 और साल 2015 का इपीएस देखें तो वह 77.98 और 60.92 हैं। अगर इसका डिफरेंस निकाले तो यह -17.07 आता है और प्रतिशत कि बात कि जाये तो यह -22% होता है और अगर 3 साल के लिये लिया है तो हम इसे 3 से डिवाइड कर देते हैं तो यह आता है -7% ( Yearly Growth) तो ऐसे में अगर आप इसमें साल 2015 में इन्वेस्टमेंट करते तो आपको प्राॅफिट होता लेकिन अब यह निगेटिव हैं इसलिये यह हमारे रडार पर फिट नहीं बैठता।
फियर वाल्यु और फ्युचर ग्रोथ (Fair Value & Future Growth):
यह भी एक इंपोर्टेंट चींज हैं इसमें आपको फेयर व्हाल्यु यानी Yearly EPS जो हमने पिछे निकाला था उसको पीई रेशों से डिवाइड करना होगा तो आपको इसका फेयर व्हाल्यु (Yearly EPS/ PE Ratio) मिलेगा। अब इसके बात आपको फेअर व्हाल्यु ( Fair Value × Current Market Price) को करेंट मार्केट प्राइस से मल्टिप्लिकेशन करना है तो आपको फ्युचर प्राइस मिलेंगी जिसे आपको देखना है उससे कंपनी आगे जाके कितना ग्रो कर सकती है यह पता लग सकता हैं।
पेग रेशो (PEG Ratio):
यह पॅरामिटर ज्यादातर अकांउट लोग देखते हैं अगर आप किसी स्टाॅक की फंडामेंटल को जानना चाहते हैं तो PEG Ratio भी देखना आवश्यक है चलिये जानते हैं इसके बारे में। अगर पेग रेशों 0-1 होता है तो यह अच्छा स्टाॅक्स माना जायेगा, 1-2 होता है तो नाॅर्मल माना जायेगा और अगर यह निगेटिव में होता है तो आप इसे इग्नोर कर दें।
यह प्रेसेंट ग्रोथ को एक्सपेक्टेड फिचर ग्रोथ से डिवाइड करके निकाला जाता हैं मतलब यह आनेवाले समय में यह कैसी ग्रोथ कर सकता है या इनका बिजनेस माॅडेल कैसा रहनेवाला हैं यह दर्शाता है PEG Ratio।
अगर आप स्मार्ट निवेश करने के तरिके जानना चाहते हैं तो स्मार्ट ली इन्वेस्टमेंट करने के 8 तरिके? यह पढिय़े।
आपने क्या सीखा:
अगर आप किसी से सीखेंगे या कहीं देखेंगे कि फंडामेंटल स्ट्राॅग स्टाॅक कैसे निकलने हैं तो वहां आपको हजारो बातें बताई गई होगीं जो आपको कभी भी समझ नहीं आयेंगी। इसलिये अगर आप सिर्फ यह ऊपर दिये गये चींजों का देखकर या कोई फिल्टर इस्तमाल करके उपर के दिये गये पॅरामीटर से अगर निवेश करते हैं तो आपको आगे जाके बहुत फायदा मिल सकता हैं।आपने इस आर्टिकल में सिखा कि कैसे अच्छे फंडामेंटल शेयर को चुनते हैं।
अगर आप इंट्राडे ट्रेंडिंग के बारे में जानना चाहते हैं तो इंट्राडे कैसे सीखें ? यह आर्टिकल भी पढ़ सकते हैं।
आपको यह जानकारी कैसी लगी अगर अच्छी लगी हो तो इसे अपने मित्रों से जरुर शेअर करे और कोई सवाल और सुझाव हो तो हमें अवश्य लिखें।
FAQ
Q: कम प्राइसवाले शेयर बुरे होते हैं क्यां?
Ans. शेयर प्राइस न देखें फंडामेंटल पॅरामीटर देखें, शेयर प्राइस से कंपनी के बारे में कुछ भी पता नहीं लगेगा.
Q: फंडामेंटल रिसर्च क्या होता हैं?
Ans. इससे हम कंपनी के ग्रोथ, व्हाल्युऐशन, मुल्य और कंपनी आगे जाके भविष्य में कैसे करेंगी इसकी स्टडी करना यानी फंडामेंटल रिसर्च होता हैं.
Q: चार्ट पॅटर्न अच्छा होता है या कंपनी के फंडामेंटल चींजे?
Ans. अगर आप निवेश करना चाहते हैं तो फंडामेंटल रिसर्च और अगर ट्रेडिंग करना चाहते हैं तो चार्ट पॅटर्न देखना सही रहेगा.
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